दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
अक्तूबर 202] ई० तक संशोधित
दर 58) है. 9 ह। 4.3 - ऋ्ध५४2%%0५-., “अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है |
दस्तूर जमांअते-इस्लामी हिन्द भाग -१ अक़ीदा, नस्बुल-ऐन (लक्ष्य) और कार्यप्रणाली ड़ नाम &
दफ़ा - : इस जमाअत का नाम “जमाअते-इस्लामी हिन्द” और इस
दस्तूर का नाम “दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द” होगा। । लागू होने की तिथि पु
दफ़ा - 2 : यह दस्तूर पहली रमजान, सन् 875 हि. तदानुसार 8
अप्रैल, 956 ई- से लागू होगा। अक़ीदा (धारणा)
दफ़ा - $ : जमाअते-इस्लामी हिन्द का बुनियादी अक्लीदा “ला इला-ह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह” है।
यानी इलाह (पूज्य-प्रभु) सिर्फ़ अल्लाह ही है, उसके सिवा कोई इलाह नहीं, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सललम) अल्लाह के रसूल हैं।
व्याख्या : इस अक़ीदे के पहले अंश यानी अल्लाह तआला के अकेले इलाह होने और किसी दूसरे के इलाह न होने का मतलब यह है कि वही अल्लाह- हम सब इनसानों का वास्तविक उपास्य और “हाकिमे-तशरीई' (नियम-क़ानून बनाने का अधिकारी, विधि-विधाता) है, जो हमारा और इस पूरे जगतू का पैदा करनेवाला, पालनहार, व्यवस्थापक, मालिक और 'हाकिमे- तकवीनी” (भौतिक जगत एवं प्राकृतिक नियमों का निर्माता) है। उपासना का हक़दार और वास्तविक मुताअ (जिसकी आज्ञा का पालन किया जाए) सिर्फ़ वही है, और इनमें से किसी हैसियत में भी कोई उसका साझीदार नहीं ।
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इस हक़ीक़त को जानने और स्वीकार करने से अनिवार्य हो जाता है कि इनसान-
(() अल्लाह के सिवा किसी को वली (संरक्षक) और कार्यसाधक, जरूरतें पूरी करनेवाला और कठिनाइयों को दूर करनेवाला, फ़रियाद सुननेवाला और हिमायती व मददगार न समझे, क्योंकि किसी दूसरे के पास वास्तविक रूप में कोई सत्ता और शासनशक्ति है ही नहीं।
(2) अल्लाह के सिवा किसी को फ़ायदा या नुक़सान पहुँचानेवाला न समझे, किसी से तक़वा न करे, किसी का डर न रखे, किसी पर आश्रित न हो, किसी से उम्मीदें न बाँधे, क्योंकि सारे अधिकारों का मालिक वास्तव में सिर्फ़ अल्लाह है।
(3) अल्लाह के सिवा किसी की उपासना न करे, किसी को नजर (चढ़ावा) न दे, किसी के आगे सिर न झुकाए। सारांश यह कि किसी के साथ वह मामला न करे जो मुशरिक (बहुदेववादी) लोग अपने उपास्यों के साथ करते रहे हैं; क्योंकि सिर्फ़ अल्लाह ही इसका हक़ रखता है कि उसी की इबादत की जाए।
(4) अल्लाह के सिवा किसी से दुआ न माँगे, किसी की पनाह (आश्रय) न ढूँढ़े, किसी को मदद के लिए न पुकारे, किसी को ईश्वरीय व्यवस्थाओं में ऐसा दख़ल देनेवाला और शक्तिशाली भी न समझे कि उसकी सिफ़ारिश से अल्लाह का फ़ैसला टल सकता हो, क्योंकि अल्लाह की सल्तनत में वास्तव में सब अधिकारहीन रईयत (प्रजा) हैं, चाहे वे फ़रिश्ते हों या नबी या औलिया।
(5) अल्लाह के सिवा किसी को जगत् का मालिक और सर्वोच्च शासक
न समझे, किसी को स्वतः आदेश देने और मना करनें का अधिकारी स्वीकार न करे, किसी: के प्रति यह विश्वास न रखे कि उसे मौलिक रूप से यह अधिकार प्राप्त है कि वह शरीअत दे सके और क़ानून बना सके, और उन सभी आज्ञापालनों को सही और वैध स्वीकार करने से इनकार कर दे जो एक अल्लाह के आज्ञापालन और उसके क़ानून के तहत न हों। क्योंकि अपने राज्य का एक ही जाइज मालिक और अपनी सृष्टि का एक ही जाइज
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: हांकिम (शासक) अल्लाह है। उसके सिवा किसी को वास्तव में मालिक होने और हाकिम होने का हक़ ही नहीं.पहुँचता। "
साथ ही इस अक़ीदे (धारणा) को क़बूल करने के बाद यह भी अनिवार्य हो जाता है कि इनसान-
(6) अपनी खुदमुख़्तारी (स्वच्छंदता) का परित्याग कर दे, अपने मन की इच्छाओं पर चलना छोड़ दे और सिर्फ़ अल्लाह का बन्दा बनकर रहे, जिसे उसने अपना अकेला इलाह (पूज्य-प्रभु) स्वीकार किया है।
(7) अपने-आपको किसी चीज़ का मालिके-मुख़्तार न समझे | हर चीज़ यहाँ तक कि अपनी जान, अपने शारीरिक अंगों और अपनी मानसिक और शारीरिक शक्तियों को भी अल्लाह की मिलकियत (सम्पत्ति) और उसकी ओर से अमानत समझे। .
(8) अपने-आपको अल्लाह के सामने ज़िम्मेदार और जंवाबदेह (उत्तरदायी) समझे, और अपनी शक्तियों के इस्तेमाल और अपने व्यवहार तथा संसाधनों के इस्तेमाल में हमेशा इस हक़ीक़त को ध्यान में रखे कि क्रियामत के दिन उसे अल्लाह तआला के सांमने इन सब चीज़ों का: हिसाब देना और अपने कर्मों का इनाम या सज़ा पाना है।
(9) अपनी पसन्द का मानदण्ड (मेयार) अल्लाहं की पसन्द को और अपने नापसन्द करने का मानदण्ड अल्लाह के नापसन्द करने को बनाए।
(0) अल्लाह से अटूटं प्रेम रखे, उसकी प्रसन्नता और उसकी निकटता प्राप्त करनें को अपनी.सारी कोशिश और दौड़-धूप का उद्देश्य तथा अपनी पूरी ज़िन्दगी का केन्द्र-बिन्दु ठहराए।
() अपने लिए अख़लाक़ (नैतिकता) में, व्यवहार में, सामाजिकता और सभ्यता एवं संस्कृति में, आज़ीविका एवं राजनीति: में, तात्पर्य यह कि ज़िन्दगी के हर मामले में सिर्फ़ अल्लाह-के मार्गदर्शन को मार्गदर्शन माने और सिर्फ़ उसी के विधान को विधान स्वीकार करे, ज़िसे अल्लाह ने निर्धारित किया हो, या उसके आदेश और हिदायत के अन्तर्गत हो, और जो उसकी शरीअत के ख़िलाफ़ हो, उसे रद्द कर दे।
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इस अक़ीदे के दूसरे अंश यानी “मुहम्मद (सल्ल-) अल्लाह के रसूल हैं" का मतलब यह है कि वास्तविक उपास्य और जगत के संम्राट की ओर से धरती पर बसनेवाले सारे इनसानों को जिस अन्तिम नबी के द्वारा क्रियामत तक के लिए प्रमाणिक आदेश-पत्र और पूर्ण जीवन-विधान भेजा गया और जिसे उस हिदायंत और विधान के मुताबिक़ अमल करके एक. पूर्ण आदर्श और नमूना क़ायम करने पर नियुक्त किया गया, वे मुहम्मद (सल्ल) हैं। .
इस तथ्य को जानने और स्वीकार करने से अनिवार्य हो जाता है कि इनसान-
(0) हर उस शिक्षा और हर उस हिदायत को बिना किसी आपत्ति के स्वीकार करे जो मुहम्मद (सल्ल.) से साबित हो।
(2) उसको किसी बात पर तैयार कर देने और किसी चीज़ से रोक देने के लिए सिर्फ़ इतनी बात काफ़ी हो कि उस.बात का हुक्म या उस चीज की . मनाही (निषेध) अल्लाह के रसूल (सल्ल.) से साबित है। इसके सिवा किसी दूसरी दलील और प्रमाण पर उसका आज्ञापालन निर्भर न करता हो।
(3) अल्लाह के रसूल (सल्ल-) के सिवा किसी का मौलिक रूप से नेतृत्व एवं मार्गदर्शन स्वीकार न करे। दूसरे इनसानों की पैरवी अल्लाह की किताब (कुरआन) और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सुन्नत (तरीके). के तहत हो, न कि उनसे आज़ाद। ह
(4) अपनी ज़िन्दगी के हर मामले में अल्लाह की किताब और उसके रसूल (सल्ल-) की सुन्नत ही को असल तर्क, प्रमाण और स्रोत ठहराए। जो विचार या अक़ीदा या तरीक़ा कुरआन और हदीस के मुताबिक़ हो उसे अपनाए और जो उनके ख़िलाफ़ हो उसे छोड़ दे ।
(5) अज्ञान के सभी: पक्षपातों को अपने दिल से निकाल दे, चाहे वे व्यक्तिगत व ख़ानदानी हों या क़बाइली व नस्ली और वतनी या साम्प्रदायिक और' दलीय | किसी के प्रेम और श्रद्धा में ऐसा ग्रस्त न हो कि वह अल्लाह के रसूल (सल्ल.) और उनके लाए हुए हक़ (सत्य) के प्रेम एवं श्रद्धा पर हावीः हो जाए या उसके. मुक़ाबले में खड़ी हो जाए। |
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(6) अल्लाह के रसूल (सल्ल-) के सिवा किसी इनसान को सत्य का मानदण्ड न बनाए, किसी को आलोचना से परे न समझे, किसी की जेहनी गुलामी (मानसिक दासता) में ग्रस्त न हो। हर एक को ख़ुदा की बनाई हुई इसी पूर्ण कसौटी पर जाँचे और परखे, और जो इस कसौटी के अनुसार जिस दर्जे में हो उसको उसी दर्जे में रखे ।'
नस्बुल-ऐन (लक्ष्य)
दफ़ा - 4 : जमाअते-इस्लामी हिन्द का नस्बुल-ऐन इक़ामते-दीन (धर्म की स्थापना) है, जिसका वास्तविक प्रेरक सिर्फ़ अल्लाह की खुशी और आख़िरत की कामयाबी की प्राप्ति है।
व्याख्या : 'इक़ामते-दीन' में शब्द 'दीन” से मुराद वह सत्य-धर्म है जिसे सारे जहान का रब, अल्लाह, अपने तमाम नबियों के द्वारा विभिन्न कालों और विभिन्न देशों में भेजता रहा है और जिसे अन्तिम और पूर्णरूप में सारे इनसानों की हिदायत के लिए अपने आख़िरी नबी मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा भेजा, और जो अब दुनिया में एक ही प्रामाणिक, सुरक्षित और अल्लाह के यहाँ स्वीकृत दीन है और जिसका नाम “इस्लाम” है।
यह “दीन” इनसान के खुले और छिपे और उसकी ज़िन्दगी के समस्त व्यक्तिगत और सामूहिक पहलुओं को अपने दायरे में लिए हुए है। धारणाओं, इबादतों और नैतिकता से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों तक इनसान की ज़िन्दगी का कोई एक विभाग भी ऐसा नहीं है जो उसके दायरे से बाहर हो।
यह दीन जिस तरह अल्लाह की प्रसन्नता और आख़िरत की सफलता की जमानत देता है उसी तरह दुनिया की समस्याओं के मुनासिब हल के लिए सबसे अच्छी जीवन-व्यवस्था भी है, और द्यक्तिगत और सामूहिक जीवन का स्वस्थ और विकसित निर्माण सिर्फ़ इसी की स्थापना से सम्भव है।
. 'सत्य का मानदण्ड बनाने”! और 'किसी का सत्य.पर होने को स्वीकार करने में! तथा “आलोचना” और “अनुचित आक्षेप और निन््दा करने' में जो बुनियादी अन्तर है उसे ध्यान में रखना ज़रूरी है।
दल्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द - प्र
इस 'दीन” की 'इक्ामत” का मतलब यह है कि किसी भेदभाव और विभाजन के बिना इस पूरे दीन की सच्चे दिल से पैरवी की जाए और हर तरफ़ से एकाग्र होकर की जाए। और इनसान की ज़िन्दगी के व्यक्तिगत और सामूहिक सभी क्षेत्रों में इसे इस तरह जारी और लागू किया जाए कि व्यक्ति का विकास, समाज का निर्माण और राज्य का गठन सब कुछ इसी दीन के मुताबिक़ हो। -
इस दीन की इक्रामत (स्थापना) का आदर्श और सबसे अच्छा व्यावहारिक नमूना वह है जिसे मुहम्मद (सल्ल.) और खुलफ़ा-ए-राशिदीन' (उन सबसे अल्लाह राजी हो) ने क्रायम किया।
तरीक़ेकार (कार्यप्रणाली)
दफ़ा - 5 : अपने नस्बुल-ऐन (लक्ष्य) की प्राप्ति के लिएं जमाअते- इस्लामी हिन्द की कार्यप्रणाली (तरीक्रेकार) निम्नानुसार होगी-
(0) कुरआन और हदीस जमाअत के कामों की आधारशिला होंगे। दूसरी सारी चीज़ों को दूसरे दर्जे की हैसियत से सिर्फ़ उसी सीमा तक सामने रखा जाएगा, जिस सीमा तक कुरआन और हदींस की दृष्टि से उनकी गुंजाइश हो।
(2) जमाअत अपने तमाम कामों में नैतिक सीमाओं की पाबन्द होगी और कभी ऐसे साधन और तरीक़े इस्तेमाल न करेगी जो सच्चाई और ईमानदारी के ख़िलाफ़ हों या जिनसे साम्प्रदायिक नफ़रत, वर्गीय. संघर्ष और धरती पर फ़साद और बिगाड़ पैदा हो।
(3) जमाअत अपने लक्ष्य (नस्बुल-ऐन) को हासिल करने के लिए रचनात्मक और शान्तिपूर्ण तरीक्रे अपनाएगी, यानी वह प्रचार एवं प्रेरणा और विचारों के प्रसार के द्वारा मन, बुद्धि और चरित्र का सुधार करेगी । इस तरह देश के सामूहिक जीवन में अपेक्षित रचनात्मक क्रान्ति लाने के लिए जनमत को प्रशिक्षित करेगी। | . अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्ल.) के बाद आरम्भ के -चार श्रेष्ठ और आदर्श
ख़लीफ़ा-अबू-बक्र, उमर, उसमान और अली (रज़ि-)
8 . न् दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
भाग - 2 जमाअत की रुकनीयत (सदस्यता) शर्तें
दफ़ा - 6 : भारतीय संघ का हर नागरिक चाहे वह मर्द हो या औरत और चाहे वह किसी क़ौम या नस्ल से सम्बन्ध रखता हो, जमाअते-इस्लामी हिन्द का रुक्न (सदस्य) बन सकता है, शर्त यह है कि वह-
() अक़ीदा “ला इला-ह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह” को उसकी व्याख्या (दफ़ा - 3 में वर्णित) के साथ समझ लेने के बाद सच्चे दिल से गवाही दे कि यही उसका अक़ीदा है।
(2) जमाअत के नस्बुल-ऐन (लक्ष्य) को उसकी व्याख्या (दफ़ा - 4 में वर्णित) . के साथ समझ लेने के बाद इक़रार करे कि यही उसका नस्बुल-ऐन है।
(3) जमाअत के तरीक़ेकार (दफ़ा - 5 में वर्णित कार्यप्रणाली) की पाबन्दी का इक़रार करे।
(4) जमाअत के दस्तूर को समझ लेने के बाद प्रतिज्ञा करे कि वह इस दस्तूर की, और इसके मुताबिक़ जमाअत के अनुशासन की पाबन्दी करेगा।
दाख़िला
दफ़ा - 7 : रुकनीयत की शर्तों (दफ़ा - 6 में वर्णित) के पूरा होने की स्थिति में. कोई व्यक्ति उस वक्त जमाअत का रुक्न (सदस्य) माना जाएगा जब अमीरे-जमाअत (जमाअत का अध्यक्ष) उसकी रुकनीयत (सदस्यता) की दरख़ास्त को मंजूर कर ले।
ज़िम्मेदारियाँ (कर्त्तव्य)
दफ़ा - 8 : जमाअत के हर रुक्न (सदस्य) के लिए अनिवार्य होगा कि-
() दीन के तमाम फ़राइज़ (अनिवार्य कामों) को, उनकी शरई पाबन्दियों के साथ अदा करे।
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(2) कबाइर (बड़े गुनाहों) से बचे और अगर मन के क्षणिक आवेगों से, वशीभूत होकर कोई बड़ा गुनाह कर बैठे तो उससे तौबा करे।
(3) अगर वह कोई ऐसी आजीविका का साधन अपनाए हुए है जो खुले गुनाह के अन्तर्गत आता हो तो उसका परित्याग कर दे, इसका लिहाज किए. बिना कि उसके छोड़ देने से कितना नुक़सान होता है और अगर उसकी आजीविका के साधनों में इस तरह के किसी साधन का कुछ अंश सम्मिलित हो तो उस अंश से अपनी आजीविका को मुक्त कर ले।
(4) अगर उसके क़ब्जे में ऐसा माल या जायदाद हो जो हराम तरीक़े से हासिल की गई हो तो उससे अपना हाथ खींच ले, लेकिन अगर वह माल या जायदाद मालूम और निश्चित न हो तो तौबा व क्षमा-याचना के साथ प्रतिकार (भरपाई) का हर सम्भव प्रयास करे।
(5) अगर उसके माल या जायदाद में किसी हक़दार का मारा हुआ कोई हक़ शामिल हो तो वह हक़ उस तक पहुँचा दे। ऐसा करना इस स्थिति में जुरूरी होगा जबकि हक़दार भी मालूम हो और वह चीज भी मालूम और निश्चित हो जो हक़ मारकर ली गई हो। अन्य स्थिति में उसे तौबा और क्षमा-याचना के साथ प्रतिकार का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।
(6) अगर वह निज़ामे-हुकूमत में कोई मंसब रखता हो या उसके
« निज़ामे-अदालत में फ़ैसले लेनेवाले ओहदे पर कार्यरत हो या उसकी क़ानून बनानेवाली किसी सभा (विधायिका) का सदस्य हो तो कोई ऐसा काम न करे जो. हक़ और इंनसाफ़ के ख़िलाफ़ हो।
* (7) यथासामर्थ्य दफ़ा - 6-के मुतालबों (अपेक्षित बातों) को पूरा करे॥
(8) अपनी योग्यता और सामर्थ्य के मुताबिक़ अल्लाह के बन्दों को उस अक़ीदे और उस लक्ष्य की ओर आमंत्रित करे, जिनका दफ़ा - 3 और 4 में स्पष्टीकरण किया गया है, और जो लोग इस अक़्रीदे और नस्बुल-ऐन को स्वीकार कर लें उन्हें 'इक्रामते-दीन' के लिए एकजुट होकर प्रयास करेंने पर तैयार करे।
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मेयारे-मतलूब (वांछित मानदण्ड)
दफ़ा - 9 : जमाअत के हर रुकन (सदस्य) को कोशिश करनी होगी कि चबह-
(।) इस्लाम और अज्ञानता (ग्रैर-इस्लाम) के फ़र्क्र से और अल्लाह की हदों से अवगत हो जाए।
(2) अल्लाह तआला से अपने सम्बन्ध को ज़्यादा-से-ज़्यादा मज़बूत करे और इसके लिए फ़र्ज़ (अनिवार्य) इबादतों के अलावा नफ़्ल इबादतों, जिक्र (ईश-स्मरण) और क्कुरआन की तिलावत वगैरा की भी पाबन्दी करे।
(3) तमाम मामलों में अपने दृष्टिकोण, विचार और व्यवहार को खुदा की हिदायत के मुताबिक़ ढाले, अपनी ज़िन्दगी के उद्देश्य, अपनी पसन्द और मूल्य के प्रतिमान और अपनी वफ़ादारियों के केन्द्र को बदलकर अल्लाह की पसन्द के अनुकूल बनाए और अपनी हठ और मन के बुत की दासता को तोड़कर रब के आदेश (प्रभु-आदेश) के अधीन हो जाए।
(4) उन तमाम जाहिली र॒स्मों से अपनी ज़िन्दगी को मुक्त करे जो शरीअत के आदेशों के ख़िलाफ़ हों।
(5) उन पक्षपातों और दिलचस्पियों से अपने दिल को और उन कामों, झगड़ों और बहसों से अपनी ज़िन्दगी को मुक्त करे जो मन की तुच्छ इच्छाओं या दुनियापरस्ती पर आधारित हों और जिनका दीन में कोई महत्व नहो।
- (6) फ़ासिक़ों व फ़ाजिरों (खुदा के अवज्ञाकारियों और दुष्टाचारियों) और ख़ुदा से ग़ाफ़िल लोगों से आसक्ति एवं आत्मीयता के सम्बन्ध-न कि सामान्य मानवीय सम्बन्ध-तोड़ ले और नेक और खुदा से डरनेवाले लोगों से सम्बन्ध जोड़े।
व्याख्या : फ़ासिक़ों और फ़ाजिरों (खुदा के अवज्ञाकारियों और दुष्टाचारियों) से अगर क़रीबी ख़ानदानी सम्बन्ध हों तो शरीअत ने जो उनके हक़ निर्धारित किए हैं उन्हें हर हाल में अदा किया जाएगा और सामान्य रीति के अनुसार
* दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द ह॒
उनके साथ सामाजिक सम्बन्ध बाक़ी रखे जाएँगे। अलबत्ता उनकी ग़लतकारियों से पूरी तरह बचना और सब्र और हिकमत के साथ उनके सुधार के लिए प्रयास करना ज़रूरी होगा।
(7) दीन के अहकाम का पाबन्द रहे और अदालतों में बिना सख्त ज़रूरत के मामलों का फ़ैसला कराने के लिए न जाए।
(8) अपने मामलों को सच्चाई, न्याय, ईश-भय और बेलाग सत्यप्रियता पर क़ायम करे।
(9) अपनी दौड़-धूप और कोशिश कों इक़ामते-दीन के नस्बुल-ऐन (लक्ष्य) पर केन्द्रित कर दे और अपनी ज़िन्दगी की वास्तविक जरूरतों के अतिरिक्त उन तमाम कामों से अलग हो जाए जो उस नस्बुल-ऐन की ओर न ले जाते हों।
2 - न वस्तूर जमाजते-इस्लामी हिन्द
भाग - $ जमाअत का निज़ाम (संघीय ढॉँचा) नौइयत (प्रकृति) दफ़ा - 0 : जमाअते-इस्लामी हिन्द का निजांम (व्यवस्था) शूराई (मंत्रणात्मक) होगा और संगठन की दृष्टि से मर्कज़ी (केन्द्रीय), हलक़ावार क्षेत्रीय) और मक़ामी (स्थानीय) निज़ामों पर आधारित होगा और इसके
अलावा अमीरे-जमाअत जुरूरत को देखते हुए अन्य इलाक़ाई निज़ाम क्षेत्रीय व्यवस्था) भी क़ायम कर सकता है।
मर्कजी निज़ाम (केन्द्रीय ढाँचा) अंग दफ़ा - । : मर्कजी निज़ाम निम्नलिखित अंगों पर आधारित होगा- (4) मजलिसे-नुमाइन्दगान (प्रतिनिधि सभा) 2) अमीरे-जमाअत (अध्यक्ष) 3) मर्कजी मजलिसे-शूरा (केन्द्रीय सलाहकार समिति) 4) क़स्यिमे-जमाअत (महासचिव)
( ( (
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. मजलिसे-नुमाइन्दगान (प्रतिनिधि सभा) ; गठन
दफ़ा - 2 : इस जमाअत की एक मजलिसे-नुमाइन्दगान होगी जो जमाअत के अरकान (सदस्यों) द्वारा निर्वाचित नुमाइन्दों (प्रतिनिधियों) और अमीरे-जमाअत और क़रग्यिमे-जमाअत पर गठित होगी।
दफ़ा - 8 : मजलिसे-नुमाइन्दगान के सदस्यों का निर्वाचन निम्नलिखित तरीक़े से होगा-
पन्द्रह सदस्यों का चुनाव जमाअत के अरकान पूरी जमाअत में से करेंगे और यह चुनाव पहले होगा। इसके बाद हर तंजीमी हल्क़ा (क्षेत्रीय इकाई) केन्द्र के अधीन इलाक़े से एक या एक से ज़्यादा नुमाइन्दे निर्वाचित कराए जाएँगे। इन नुमाइन्दों.की संख्या और उनमें महिलाओं का कम-से-कम अनुपात जमाअत के अरकान (सदस्यों) की संख्या को सामने रखकर समंय- समय पर मर्कज़ी मजलिसे-शूरा (केन्द्रीय सलाहकार समिति) निश्चित करती
रहेगी। . ह ; दफ़ा - 4 : (अ) मजलिस के चुनाव के समय जो व्यक्ति जमाअत की इमारत (अध्यक्ष का पद) या क़स्यिमी (महासचिव का पद) के उत्तरदायित्व को निभां रहा हो, उसका यह पद उसके मजलिस का रुकन चुने जाने में बाधक न होगा। ह |
(ब) अगर अमीरे-जमाअत या क़ग्यिमेजमाअत मजलिस का रुक्न निर्वाचित हो जाए तो अमीर (अध्यक्ष) के नए चुनाव या क्रग्यिम (महासचिव) की नियुक्ति की अस्थायी अवधि में इस चुनाव या नियुक्ति के कारण मजलिस के सदस्यों की तादाद में रह जानेवाली कमी अमीर. और शूरा के चुनाव में बाधक न होगी।
रुकनीयत (सदस्यता) के लिए वांछित गुण दफ़ा-- 5 : मजलिसे-नुमाइन्दगान की रुकनीयत के लिए किसी के
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() वह मजलिसे-नुमाइन्दगान की रुकनीयत या जमाअत के किसी और पद का उम्मीदवार या इ-छुक न हो।
(2) दीन की समझ, तक़वा (ईश-भय), अमानतदारी, चिन्तन और सही राय क़ायम करना, मामले की समझ, इस्लामी आन्दोलन के स्वभाव की गहरी परख और उससे लगाव, जमाअत के दस्तूर की पाबन्दी, इसके साथ खुदा की राह में जमे रहने की दृष्टि से सामूहिक रूप से अपने निवाचन-दक्षेत्र के जमाअत के अरकान में बेहतर हो।
कार्यकाल
दफ़ा - 6 : (अ) मजलिसे-नुमाइन्दगान का चुनाव चार साल के लिए होगा।
(ब) एक मजलिसे-नुमाइन्दगान का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले नई मजलिसे-नुमाइन्दगान का चुनाव हो जाना जरूरी है, लेकिन अगर किसी सख्त मजबूरी की वजह से चार साल की मुद्दत ख़त्म होने तक नया चुनाव न हो सके तो वर्तमान मजलिस नई मजलिस के निर्वाचन तक बरक़रार रहेगी।
अधिकार
दफ़ा - 77 : मजलिसे-नुमाइन्दगान के अधिकार निम्नलिखित होंगे-
() अमीरे-जमाअत का चुनाव और पद से हटाना।
(2) अमीरे-जमाअत के इस्तीफ़े के बारे में फ़ैसला।
(3) मर्कजी मजलिसे-शूरा या उसके किसी रुक्न का चुनाव और पद से हटाना।
(4) अमीरे-जमाअत और मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के बीच विवादास्पद मामलों के बारे में फ़ैसला (दफ़ा - 39 स)
(5) जमाअत के दस्तूर में संशोधन से सम्बन्धित मर्कजी मजलिसे शूरा की सिफ़ारिशों और मजलिसे-नुमाइन्दगान या अमीरे-जमाअत के प्रस्तावों पर विचार और फ़ैसला (दफ़ा - 73, 74)।
(6) मीक़ाती प्रोग्राम (सत्रकालीन कार्यक्रम) की रौशनी में विगत दो वर्षों के कामों की समीक्षा (जायजा)।
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सभाएँ
दफ़ा - 8 : (अ) मजलिसे-नुमाइन्दगान की सभा सामान्यतः अपने कार्यकाल के शुरू. होने पर ज़्यादा-से-ज्यादा एक महीने के अन्दर होगी। मजलिस की दूसरी सभा आधी मीक़ात (मध्य-सत्र) से पहले एक महीने के अन्दर या उसके बाद ज़्यादा-से-ज़्यादा तीन महीने के अन्दर आयोजित की जाएगी।
(ब) इस मजलिस की गैर-मामूली सभा ज़रूरत पड़ने पर किसी भी समय बुलाई जा सकेगी |
(स) अगर मजलिसे-नुमाइन्दगान के दस-अरकान, किसी ऐसी समस्या पर जो मजलिस के अधिकारों के भीतर हो, मजलिसे-नुमाइन्दगान की कोई विशेष सभा बुलाने की लिखित माँग करें तो ज़रूरी होगा कि मजलिसे- नुमाइन्दगान के अरकान से इस सिलसिले में राय ली जाए। अगर मजलिस के अरकान का बहुमत सभा बुलाने के पक्ष में हो तो दो महीने के अन्दर उसकी विशेष सभा बुलानी ज़रूरी होगी।
(द) मजलिसे-नुमाइन्दगान की सभा के समय अमीरे-जमाअत और ' क्रय्यिमेजमाअत मजलिस के सद्र (अध्यक्ष) और मोतमद (सचिव) होंगे, लेकिन जिस समय अमीरे-जमाअत के व्यक्तित्व से सम्बन्धित किसी मामले पर विचार हो, तो अमीरे-जमाअत की जगह पर मजलिस अपने में से किसी दूसरे व्यक्ति को मजलिस का अस्थायी अध्यक्ष चुन लेगी।
हाजिरी का निसाब (कोरम)
. दफ़ा - 9 : मजलिसे-नुमाइन्दगान की हाज़िरी का निसाब (कोरम) उसके कुल अरकान के 60 फ़ीसद पर आधारित होगा। लेकिन अगर कोई सभा कोरम (0४०४० पूरा न होने की वजह से स्थगित करनी पड़े तो दूसरी सभा के लिए कोई कोरम न होगा।
व्याख्या : अगर किसी मामले में मजलिस के कुछ अरकान को दफ़ा-शा के अनुसार मतदान का अधिकार न हो तो हाज़िरी का कोरम, उनको अलग करके, बाक़ी अरकान के 60 फ़ीसद पर आधारित होगा।
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फ़ैसले का तरीक़ा
दफ़ा - 20 : कोशिश की जाएगी कि मजलिसे-नुमाइन्दगान के फ़ैसले सर्वसम्मति से हों, दूसरी स्थिति में फ़ैसला बहुमत से होगा। लेकिन अगर किसी मामले में मत (राएँ) बराबर-बराबर विभाजित हो जाएँ तो फ़ैसला उन मतों के अनुसार होगा जिनमें मजलिस के सद्र का मत शामिल हो।
व्याख्या : दस्तूर में संशोधन या अमीर को पद से हटाना या मर्कज़ी मजलिसे-शूरा को भंग करने के सिलसिले में फ़ैसला सिर्फ़ उपस्थित अरकान (सदस्यों) के बहुमत से न होगा, बल्कि मजलिस के उन तमाम-अरकान के | और इसके लिए जरूरत पड़ने पर गैर-हाज़िर अरकान के लिखित मत भी प्राप्त कर लिए जाएँगे।
दफ़ा - 2 : अगर मजलिसे-नुमाइन्दगान किसी ऐसे मसले पर विचार कर रही हो जिंसका सम्बन्ध मर्कजी मजलिसे-शूरा के किसी रुकन या मर्कजी मजलिसे-शूरा या अमीरे-जमाअत को पद से हटाने या अमीरे-जमाअत के इस्तीफ़े से हो तो इस मसले पर सम्बद्ध व्यक्ति या व्यक्तियों को मतदान का हक़ न होगा।
दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द 7
29. अमीरे-जमाअत | हैसियत ।
. दफ़ा - 2१ : जमाअते-इस्लामी हिन्द्र का एक अमीर होगा, जिसकी हैसियत प्रचलित पारिभाषिक शब्द 'अमीरुल-मोमिनीन' की न होगी, बल्कि सिर्फ़ इस जमाअत के रहनुमा (नेता) की होगी। जमाअत के अरकान 'मारूफ़' (भले काम) में उसके आज्ञापालन के पाबन्द होंगे। जमाअत का
_ आमंत्रण अपने अमीर के व्यक्तित्व यां इमारत (अध्यक्ष-्पद) की ओर न .. होंगो, बल्कि अपने अक़ीदे और नस्बुल-ऐन (लक्ष्य की ओर होगा।
कह अध्यक्ष-पद-के-लिए वांछित. गुण
दफ़ा - 23 : अमीरे-जमाअत के चुनाव में निम्नलिखित गुणों को ध्यान में रखा जाएगा-
(7) वह इमारत (अध्यक्ष-पद) या किसी और जमाअती ओहदे का उम्मीदवार या इच्छुक न हो।
. (2) कुरआन और सुन्नत क़ा इल्म, तक़वा,. दीन्ती सूझ-बूझ, अमानत और दियानतदारी, दूरदर्शिता और सही राय क़ायम करना, संकल्प और दृढ़ता, मामले की समझ और निर्णय-शक्ति, सहनशीलता एवं धीरता, इस्लामी आन्दोलन के स्वभाव की गहरी परख और उससे लगाव, जमआत के दस्तूर-की-प्राबन्दी, अल्लाह की. राह में मजबूती के साथ जमे रहने और सम्बन्धित जिम्मेदारियों को-पूसा-कर॒ने की-योग्यता की दृष्टि से सामूहिक रूप से जमाअत में सबसे बेहतर हो।
चुनाव ... दफ़ा:- 24 : (अ) अमीरे-जमाअत का चुनाव मजलिसे-नुमाइन्दगान करेगी। 4 हा (ब) अमीरे-जमाअत का चुनाव आम हालात में अनिवार्यतः मजलिसे- नुमाइन्दगान की सभा में होगा और किसी व्यक्ति के अमीरे-जमाअत चुने जाने के लिए ज़रूरी होगा कि उपस्थित अरकान (सदस्यों) के 50 फ़ीसद से
7 किक का ; ीज दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
अधिक मत उसके पक्ष में हों | लिखित मतों के द्वारा चुनाव सिर्फ़ असामान्य हालात में हो सकेगा।
(स) जरूरी होगा कि हर मजलिसे-नुमाइन्दगान अपने कार्यकाल के शुरू होने पर ज़्यादा-से-ज़्यादा एक महीने के अन्दर अमीर का नया चुनाव कर दे ।
(द) एक ही व्यक्ति को इमारत (अध्यक्ष-पद) के लिए बार-बार निर्वाचित किया जा सकता है।
दफ़ा - 25 : अगर इमारत (अध्यक्षता) का पद अचानक किसी कारण से ख़ाली हो जाए और अमीरे-जमाअत इस स्थिति में हो कि किसी व्यक्ति को अस्थायी रूप से अमीरे-जमाअत नामजद कर दे तो वह ऐसा कर देगा। अन्य स्थिति में मरकज में मौजूद मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान आपसी सलाह-मश्वरे से अपने में से क्रिसी को अस्थायी अमीर चुन लेंगे। और अगर
मरकज़ में मर्कज़ी मजलिसे-शूरा का एक ही रुकन मौजूद हो तो वह अस्थायी...
रूप से इमारत (अध्यक्ष-पद) की ज़िम्मेदारी सैभाल लेगा। दूसरी स्थिति में मरकज में मौजूद जमाअत के अरकान बहुमत से अस्थायी अमीर का चुनाव कर लेंगे। इमारत की यह अस्थायी व्यवस्था ज़्यादा-से-ज़्यादा चार महीने के लिए होगी और इस अवधि के समाप्त हो जाने से पहले यह ज़रूरी होगा कि मजलिसे-नुमाइन्दगान दफ़ा-24 (अ) और (ब) के अनुसार अमीर का चुनाव कर ले। इमारत का यह नया चुनाव अस्थायी होगा। यह और बात है कि मजलिसे-नुमाइन्दगान जमाअत के. हितों या जरूरतों को सामने रखते हुए इस चुनाव को स्थायी करने का फ़ैसला करे।
दफ़ा - २6 : (अ) अगर अमीरे-जमाअत के लिए यह ज़रूरी हो कि वह , अस्थायी रूप से अपनी ज़िम्मेदारियों से स्वयं अलग हो जाए या वह जमाअत | के मरकज से किसी ज़रूरत से गैर-हाज़िर हो रहा हो तो उसे अधिकार होगा कि उस अवधि के लिए किसी को अपना क़ायम-मक्राम (कार्यवाहक) नियुक्त कर दे।
(ब) इस नियुक्ति की मुद्दत एक साल से ज़्यादा न होगी और तीन माह से ज़्यादा होने की स्थिति में इसके लिए मर्कजी मजलिसे-शूरा की पुष्टि जरूरी होगी।
दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द 49
व्याख्या : किसी व्यक्ति के “अस्थायी अमीए या “क़ायम-मक़ाम अमीर! . होने का मतलब यह है कि स्थायी अमीर के आ जाने पर उस व्यक्ति की इमारत (अध्यक्षता) अपने-आप ख़त्म हो जाएगी।
कार्यकाल
दफ़ा - १7 : कोई अमीरे-जमाअत उस समय तक अपने पद पर बरक़रार - रहेगा जब तंक कि दफ़ा-24 (अ) और (ब) या दफ़ा-25 के मुताबिक़ नया अमीर इमारत (अध्यक्ष-पद) की जिम्मेदारी न सँभाल ले।
कर्त्तत्य और अधिकार
दफ़ा - 28 : अमीरे-जमाअत के कर्त्तत्य और अधिकार निम्नानुसार होंगे-
(।) जमाअत के अनुशासन और तहरीक (आन्दोलन) को चलाने की अन्तिम ज़िम्मेदारी. अमीरे-जमाअत पर होगी।
(2) (अ) अमीरे-जमाअत अपनी सहायता के लिए मर्कज़ी मजलिसे-शूरा . के सलाह-मश्वरे से नायब अमीर/नायब अमीरों (उपाध्यक्ष/उपाध्यक्षों) को नियुक्त कर सकता है।
(ब) नायब अमीर या नायब उमरा अपने कर्तव्यों और अधिकारों को पूरा करने के प्रति अमीरे-जमाअत के सामने जवाबदेह होंगे।
(3) जमाअत की पॉलिसी (नीति) का निर्धारण और उन तमाम महत्वपूर्ण मामलों के फ़ैसले जिनका जमाअत की पॉलिसी या उसकी व्यवस्था पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता हो, अमीरे-जमाअत मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के सलाह-मश्वरे से करेगा।
(4) अमीरे-जमाअत के, लिए अनिवार्य होगा कि-
0) अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल-) की इताअत व वफ़ादारी को हर चीज़ पर प्राथमिकता दे।
(४) जमाअत के मक़सद व नस्बुल-ऐन की ख़िदमत को दिल व जान से अपना सर्वप्रथम कर्त्तव्य समझे।
20 दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
(॥) वह अपने व्यक्तित्व और व्यक्तिगत हितों पर जमाअत के हितों और उसके काम की जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दे।
(6५) जमाअत के अरकान के बीच हमेशा इनसाफ़ और दियानतदारी के साथ फ़ैसला करे।
(४) जमाअत की जो. अमानतें उसके संरक्षण (तह॒वील) में हों, उनकी पूरी-पूरी हिफ़ाजत करे।
(४) इस दस्तूर का खुद पाबन्द रहे और इसके मुताबिक़ जमाअत की व्यवस्था को क़ायम रखने की पूरी कोशिश करे।
(5) (अ) अमीरे-जमाअत के अधिकार निम्नानुसार होंगे--
0) अगर किसी महत्त्वपूर्ण मामले में तत्काल क़दम उठाना अनिवार्य हो और मर्कजी मजलिसे-शूरा के तमाम अरकान से लिखित रूप में भी राय लेने का मौक़ा न हो तो अमीरे-जमाअत मर्कजी मजलिसे-शूरा के जिन अरकान से भी उस समय मश्वरा ले सकता हो, उनके मश्वरे से फ़ैसला करके कोई क़दम उठा सकता है। अलबत्ता मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा आयोजित होने पर अमीरे-जमाअत उसमें उस फ़ैसले को तौसीक़ (पुष्टि) के लिए पेश करेगा। (व्याख्या, दफ़ा-29)।
(४) जमाअत की व्यवस्था से सम्बन्धित सभी मामलों को पूरा करना।
(॥) जमाअत के हित में मर्कज़ी मजलिसे-शूरा द्वारा लगाई गई पाबन्दियों (अगर कोई हों) के अन्तर्गत जमाअत की सम्पत्तियों का उपयोग करना और जमाअत की तरफ़ से चल और अचल सम्पत्तियों की ख़रीद, बिक्री, विनिमय (तबादला), उन सम्पत्तियों को उपहार के रूप में देना या उनको किसी और तरह से हस्तान्तरित करना।
(69५) जमाअत में अरकान के दाख़िले की मंजूरी देना (दफ़ा-7) और जमाअत से अरकान को ख़ारिज (निष्कासित) करना (दफ़ा-68, 69)।
(९) आवश्यकता के अनुसार क्षेत्रीय व्यवस्था और संगठनात्मक क्षैत्र : क़ायम करना (दफ़ा-70 और दफ़ा-45 अ)।
दस्तूर जमाअत्ते-इस्लामी हिन्द ह ड्व
(५) ज़रूरत पड़ने पर अस्थायी अमीर या 'क्रायम-मक़ाम अमीर” नामजद करना (दफ़ा-25, 26 अ) *
* (शो) मजलिसे-नुमाइन्दगान की साधारण व असाधारण सभा बुलाना (दफ़ा-8 अ, ब)।
* (शं7) मजलिसे-नुमाइन्दगान की सभा की अध्यक्षता करना (दफ़ा-8 स)।
(00 मजलिसे-नुमाइन्दगान में मतों के बराबर होने पर फ़ैसला करना (दफ़ां-20)
0) मर्कजी मजलिसे-शूरा की साधारण व असाधारण सभा बुलाना (दफ़ा-85 अ, ब और स)
(४) मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा की अध्यक्षता करना (दफ़ा-85 द)
(पं) अगर मर्कजी मंजलिसें-शूरा किसी सम्रस्यो, पर एकमत न हो सके तो मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के अरकान की एक तिहांई से अधिक मतों के सांथ * फ़ैसला करना (दफ़ा-89 ब)
(पा) जो मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान न हों, उन्हें का शरीक होने की इजाजत देना (दफ़ा-40)
(0) क्रस्बिमे-जमाअत (महासचिव) और मुआविन क्रस्यिम/मुआविनीन क्रस्यिम (महासचिव के सहयोगी/सहयोगियों) की नियुक्ति करना और उन्हें निर्देश देना (दफ़ा-4, 44)।
(५९) हलक़े क्षेत्र) के अमीरों की नियुक्ति और उनके कामों की निगरानी (दफ़ा-46 अ और ब)
(८४) हलक़ों की मजलिसे-शूरा के फ़ैसलों की तौसीक़ (पुष्टि) करना (दफ़ा-5)।
(:शं) मक़ामी जमाजतों के लिए अमीरों की नियुक्ति करना (दफ़ा-53)।
(शं)) जमाअत के हितों के अन्तर्गत किसी बैतुल-माल (कोष) को मर्कज़ी बैतुल-माल (केन्द्रीय कोष) में विलय कर लेने का फ़ैसला करना
22 दस्तूर जमाअत्ते-इस्लामी हिन्द
(दफ़ा-57 ब)।
(57) जिन स्थानों पर जमाअत का एक ही रुक्न हो, उन स्थानों की जुकात वगैरा के सिलसिले में मुनासिब नियम बनाना (व्याख्या : दफ़ा-58)।
(०) मर्कजी बैतुल-माल से जमाअत के कामों पर रक़म खर्च करना (दफ़ा-59)।
... (०7) हलक़ों के अमीरों के बैतुल-माल के ख़र्चों पर नज़र रखना (दफ़ा-6 ब)।
0एप) बैतुल-माल् से सम्बन्धित नियम और क़ायदे बनाना (दफ़ा-69)।
0०पा) सभी पदाधिकारियों के इस्तीफ़ों के बारे में फ़ैसला करना (दफ़ा-65 आ)। ह
(०00) क्रस्यिमे-जमाअत, हलक़े के अमीरों और मक़ामी अमीरों को पद से हटाना (दफ़ा-67)।
(५) जमाअत के कामों को पूरा करने के लिए कारकुनों (कार्यकर्ताओं) की नियुक्ति एवं उनके कर्त्तव्यों का निर्धारण और उनकी बरख़ास्तगी।
(००५) जमाअत के अरकान को निलम्बित करना (दफ़ा-69 ब)।
(०शां) मातहत (अधीनस्थ) जमाअतों को निलम्बित करना या समाप्त करना (दफ़ा-70)।
(:४शं।) उपनियमों का बनाना (दफ़ा-7)।
(०070 मजलिसे-नुमाइन्दगान की सभा में संविधान-संशोधन से सम्बन्धित कोई प्रेस्ताव पेश करना (दफ़ा-74)
(ब) अमीरे-जमाअत इन अधिकारों को जिस तरह खुद इस्तेमाल कर सकता है, उसी तरह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के माध्यम से भी इस्तेमाल कर सकेगा।
व्याख्या : ये अधिकार जिस तरह स्थायी अमीर को हासिल होंगे उसी तरह अस्थायी अमीर को भी हासिल होंगे। अलबत्ता क्रायम-मक़ाम (कार्यवाहक) अमीर को सिर्फ़ वे अधिकार प्राप्त होंगे जो अमीरे-जमाअत ने उसे दिए हों ।
: दस्तूर जमाअते-इस्ल्ामी हिन्द 23
3. मर्कजी मजलिसे-शूरा ह हैसियत दफ़ा - 29 : अमीरे-जमाअत की सहायता और सलाह-मश्वरे के लिए - एक मर्कज़ी मजलिसे-शूरा होगी, जिससे अमीरे-जमाअत उन सारे महत्त्वपूर्ण मामलों में मश्वरा लेगा, जिनका जमाअंत की पॉलिसी या उसकी व्यवस्था पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता हो। | : व्याख्या : अगर किसी महत्त्वपूर्ण मामले में तत्काल क़दम उठाना . अनिवार्य हो और मर्कजीं मजल़िसे-शूरा के सारे अरकान से लिखित रूप में भी परामर्श लेने का अवसर न हो तो अमीरे-जमाअत मर्कज़ी मजलिंसे-शूरा के जिन अरकान से भी उस समय मश्वरा ले सकता हो, उनके मश्वरे से फ़ैसला करके कोई क़दंम उठा सकता है। अलबत्ता मर्कज़ी मजलिसे-शूरा की सभा आयोजित होने पर अमीरे-जमाअत उसमें उस फ़ैसले को तौसीक़ (पुष्टि) के लिए पेश क़रेगा। ु गठन ।
दफ़ा - 30 : इस मजलिस के कुल अरकान की तादाद 25 होगी, जिनमें से 24 का चुनाव मजलिसे-नुमाइन्दगान अपने में से करेगी और 25वाँ रुक्न . क़ग्यिमे-जमाअत बहैसियते-ओहदा होगा।
व्याख्या : मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के अरकान उस मजलिसे-नुमाइन्दगान के भी पहले की तरह रुक्न रहेंगे, जिसके अन्दर से उनका चुनाव हुआ हो।
दफ़ा - 3 : मर्कजी मजलिसे-शूरां का चुनाव प्रत्येक नई मजलिसे- नुमाइन्दगान के कार्यकाल के शुरू होने से ज़्यादा-से-ज़्यादा दो महीने के अन्दर हो जाना जरूरी है। रुकनीयत (सदस्यता) के लिए वांछित गुण
दफ़ा - 32 : मर्कज़ी मजलिसे-शूरा' की रुकनीयत के लिए किसी को . निर्वाचित करते समय निम्नलिखित गुणों को ध्यान में रखा जाएगा-
24 , " दत्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
() वह मर्कजी मजलिसे-शूरा कीं सदस्यता या किसी और जमाअती ओहदे का उम्मीदवार या इच्छुक न हो।
(2) दीन की समझ, तक़वा (ईश-भय), अमानतदारी, चिन्तन व सही राय क़ायम करना, मामले की समझ, इस्लामी तहरीक (आन्दोलन) के स्वभाव की गहरी परख और उससे लगाव, जमाअत के दस्तूर की पाबन्दी और अल्लाह की राह में मजबूती के साथ जमे रहने के लिहाज से सामूहिक रूप से मजलिसे-नुमाइन्दगान के अरकान में बेहतर हो।
कार्यकाल
दफ़ा - 33 : प्रत्येक मर्कज़ी मजलिसे-शूरा उस समय तक बरक़रार रहेगी, जब तक दफ़ा-80 व $ के अनुसार नई मर्कज़ी मजलिसे-शूरा का गठन न हो जाए।
दफ़ा - 34 : अगर मर्कज़ी मजंलिसे-शूरा का कोई स्थान अस्थायीः मुद्दत के लिए ख़ाली हो जाए तो उसकी पूर्ति नियमानुसार कर ली जाएगी और यह चुनाव अस्थायी होगा।
सभाएँ
दफ़ा - 35 : (अ) मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा आम तौर से साल में एक बार हुआ करेगी और दो सभाओं के बीच 5 महीने से ज्यादा अन्तराल न होगा।
(ब) मर्कजी मजलिसे-शूरा की असाधारण सभा अमीरे-जमाअत किसी भी समय बुला सकता है।
(स) मर्कजी मजलिसे-शूरा के पाँच अरकान अगर अमीरे-जमाअत से सभा बुलाने के लिए लिखित माँग करें तो भी मजलिस की असाधारण सभा जल्द से जल्द बुलानी जुरूरी होगी।
(द) सभा के समय अमीरे-जमाअत और क्र्यिमे-जमाअत मजलिस के अध्यक्ष और सचिव होंगे।
दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द 25
कोरम ((१प.07ए77)
. दफ़ा - $6 : मर्कज़ी मजलिसे-शूरा का कोरम तेरह अरकान पर आधारित होगा, लेकिन अगर कोई इजलास कोरम पूरा न होने के कारण स्थगित करना पड़े तो दूसरे इजलास के लिए कोई कोरमः न होगा।
कार्रवाई
दफ़ा - 37 £ मर्कजी. मजलिसे-शूरा की प्रत्येक सामान्य सभा में निम्नलिखित चीज़ें विचार और फ़ैसले के लिए पेश होंगी-
() जमाअत की सालाना रिपोर्ट ।
(2) विगत वर्ष के बजट की रौशनी में मर्कजी बैतुल-माल के आमद व ख़र्च (आय-व्यय) की रिपोर्ट, जिसके साथ ऑडिटर की रिपोर्ट भी शामिल होगी। (3) आगामी वर्ष का बजट। (4) अगर जुरूरत हो तो भविष्य के लिए जमाअती प्रोग्राम । (5) जमाअत की पॉलिसी व प्रोग्राम, व्यवस्था या अन्य जमाअती मामलों * से सम्बन्धित वे प्रस्ताव जो अमीरे-जमाअत या मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के किसी रुक्न की तरफ़ से पेश हों।
व्याख्या : जमाअत की व्यवस्था या अन्य जमाअती मामलों के सम्बन्ध में मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान प्रस्ताव पेश कर सकते हैं, अलबत्ता उनका वह आंश प्रस्तावित नहीं किया जा सकता जो अमीरे-जमाअत की अधिकार-परिधि में आता: है। |
नोट : जमाअत के अरकान के किसी प्रस्ताव को अगर अमीरे-जमाअत या मर्कजी मजलिसे-शूरा का कोई रुक्न महत्त्वपूर्ण समझे तो वह भी पेश हो सकता है।
दफ़ा - 38 : जमाअत के दस्तूर से सम्बन्धित अगर कुछ प्रस्ताव हों तो मर्कजी मजलिसे-शूरा के इजलास में उनसे सम्बन्धित सिफ़ारिशें मुरत्तब (संकलित) की जाएँगी, ताकि उन्हें मजलिसे-नुमाइन्दगान के सामने पेश किया जाए
26 हे ॥ दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
फ़ैसले का तरीक़ा
दफ़ा - 39 : (अ) कोशिश की जाएगी कि मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के फ़ैसले सर्वसम्मति से हों ।
(ब) अगर किसी मसले में मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान एक मत न ॒- हो सकें और मतदान करनेवाले मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान के एक तिहाई से ज़्यादा मत अमीरे-जमाअत के मत के साथ हों तो अमीरे-जमाअत अपने मतानुसार फ़ैसला कर सकता है। अन्य स्थिति में फ़ैसला मतदान करनेवाले मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान के बहुमत के अनुसार होगा।
(स) बुनियादी पॉलिसी के निर्माण या उसमें संशोधन से सम्बन्धित फ़ैसले के लिए ज़रूरी होगा कि या तो मर्कजी मजलिसे-शूरा के उपस्थित अरकान का तीन चौथाई (8/4) बहुमत उसके पक्ष में हो। या मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के आधे उपस्थित अरकान और अमीरे-जमाअत उसके पक्ष में हों। अन्य स्थिति में यह मामला विवादास्पद क़रार पाएगा और मजलिसे- नुमाइन्दगान के द्वारा तय होगा। *
गैर-अरकाने-शूरा का शरीक होना दफ़ा - 40 : अमीरे-जमाअत अगर जरूरत समझे तो, उनको भी मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा में शरीक होने के लिए आमंत्रित कर सकता है जो
मर्कजी मजलिसे-शूरा के रुक्न नहीं हैं, अलबत्ता उन्हें मतदान का अधिकार प्राप्त न होगा।
वस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द + था
4. क़य्यिमे-जमाअत (महासचिव) नियुक्ति ..
दफ़ा - 4 : (7) जमाअते-इस्लामी हिन्द का एक क़रस्यिम होगा, जिसकी नियुक्ति अमीरे-जमाअत करेगा, इस नियुक्ति के सिलसिले में अमीरे-जमाअत मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान की रायों को भी सामने रखेगा।
(2) (अ) क़ग्यिमे-जमाअत के सहयोग के लिए अमीरे-जमाअत एक या एक से अधिक मुआविन क़्यिम (सहायक सचिवों) की नियुक्ति भी मर्कजी मजलिसे-शूरा के परामर्श से कर सकता है।
(ब) सभी मुआविन क्रस्यिम अपने कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों के लिए क़य्यिमे-जमाअत के सामने उत्तरदायी होंगे ।
क़य्यिम-पद के लिए वांछित गुण
दफ़ा - 42 : क्रस्यिमेजजमाअत की नियुक्ति में निम्नलिखित औसाफ़ (गुणों) को ध्यान में रखा जाएगा-
() वह क्रस्यिम-पद या किसी और जमाअती पद का उम्मीदवार या इच्छुक न हो।
(2) दीन की समझ, तक़वा (ईश-भय), अमानतदारी, दूरदर्शिता और सही राय क्रायम करने की सलाहियत, मामले की समझ, फ़ैसला करने की क्षमता, सहानुभूति और सहिष्णुता, इस्लामी तहरीक के स्वभाव की गहरी
. परख और उससे लगाव, जमाअत के दस्तूर की पाबन्दी और अल्लाह की राह में मजबूती के साथ जमे रहने और संगठनात्मक क्षमता की दृष्टि से जमाअत के आम अरकान से बेहतर हो।
कर्त्तव्य दफ़ा - 48 क्रस्यिमे-जमाअत के कर्त्तव्य निम्नलिखित होंगे-
(7) वह जमाअत के सभी केन्द्रीय विभागों के अनुशासन एवं व्यवस्था की निगरानी करेगा।
28 ः वस्तूर जमाजते-डस्लामी हिन्द
(2) वह जमाअत के सामान्य अनुशासन को ठीक-ठीक क़ायम रखेगा।
(3) संगठन के सभी हलक़ों से सम्पर्क और उनपर निगाह रखेगा और हालात के मुताबिक़ उन्हें हिदायतें देता रहेगा।
दफ़ा - 44 : क्रस्यिमे-जमाअत दफ़ा-48 में वर्णित अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह अमीरे-जमाअत की हिदायतों के अधीन करेगा और इस सिलसिले में वह अमीरे-जमाअत के सामने उत्तरदायी होगा।
हलक़ावार निज़ाम (क्षेत्रीय व्यवस्था) तंजीमी हलक़े (संगठनात्मक क्षेत्र)
दफ़ा - 45 : (अ) जमाअती व्यवस्था के- लिए अमीरे-जमाअत तंजीमी हलके मुक़र्रेर करेगा और इस सिलसिले में वह मर्कज़ी मजलिसे-शूरा के अरकान के सलाह-मश्वरों को भी अपने सामने रखेगा।
(ब) हर तंजीमी हलक़े की व्यवस्था अमीरे-हलक़ा और हलक़े की मजलिसे-शूरा पर आधारित होगी।
अमीरे-हलक़ा
दफ़ा - 46 : (अ) हर तंजीमी हलक़े के लिए एक अमीर होगा, जिसकी नियुक्ति अमीरे:जमाअत हलके की मजलिसे-शूरा से सलाह-मश्वरे के बाद करेगा और इस नियुक्ति के लिए हलक़े के अरकान की रायों-और जमाअत की मस्लहतों (हितों) को भी सामने रखेगा और इस उद्देश्य के लिए जरूरत पड़ने पर स्वयं अमीरे-जमाअत की ओर से भी किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम अरकान के सामने रखे जा सकेंगे।
(ब) अमीरे-हलक़ा मरकज की हिदायतों के अधीन अपने हलके की जमाअतों के अनुशासन और व्यवस्था और हलक़े के अरकान के प्रशिक्षण व मार्गदर्शन का ज़िम्मेदार होगा और इन सारे मामलों में वह अमीरे-जमाअत के सामने उत्तरदायी होगा।
(स) अमीरे-हलक़ा अपनी जिम्मेदारियों को अपने सहयोगियों के द्वारा भी पूरा कर सकेगा।
दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द 29
हलक़े के अमीर (अध्यक्ष) के लिए वांछित गुण
दफ़ा - 47 : अमीरे-हलक़ा के चुनाव में निम्नलिखित गुणों को ध्यान में रखा जाएगा-
(7) वह हलक़े की इमारत (अध्यक्ष-पद) या किसी और जमाअती पद का उम्मीदवार या इच्छुक न हो।
(2) दीन की समझ, तक़वा (ईश-भय), अमानत व दियानतदारी, मामले की समझ, सहिष्णुता, इस्लामी आंदोलन के स्वभाव की गहरी परख और उससे लगाव, जमाअत के दस्तूर की पाबंदी, दावती जिद्देजुहद और अल्लाह की राह में मजबूती के साथ जमे रहने और संगठनात्मक क्षमता के लिहाज से सामूहिक रूप से हलक़े के आम अरकान से बेहतर हो।
हलके की मजलिसे-शूरा
दफ़ा - 48 : (आ) प्रत्येक अमीरे-हलक़ा के लिए हलक़े की एक मजलिसे-शूरा होगी।
(ब) हलक़े की मजलिसे-शूरा के अरकान की तादाद अमीरे-हलक़ा निश्चित करेगा।
(स) हलक़े की मजलिसे-शूरा के अरकान का चुनाव हलक़े के अरकान करेंगे।
(द) हलके की मजलिसे-शूरा का चुनाव चार साल के लिए होगा।
दफ़ा - 49 : हलक़े की मजलिसे-शूरा की रुकनीयत (सदस्यता) के लिए किसी को निर्वाचित करते समय निम्नलिखित गुणों को ध्यान में रखा जाएगा-
(।) वह हलक़े की मजलिसे-शूरा की रुकनीयत या किसी और जमाअती पद का उम्मीदवार या इच्छुक न हो।
(2) दीन की समझ, तक़वा (ईश-भय), अमानतदारी, दूरदर्शिता और सही राय क़ायम करना, मामले की समझ, इस्लामी आन्दोलन के स्वभाव की गहरी परख और उससे वाबस्तगी, जमाअत के दस्तूर की पाबन्दी और
30 दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
अल्लाह की राह में मजबूती के साथ जमे रहने के लिहाज से सामूहिक रूप से हलक़े के अरकान में बेहतर हो।
दफ़ा - 50 : (अ) अमीरे-हलक़ा सभी महत्त्वपूर्ण मामलों में अपने हलक़े की मजलिसे-शूरा से सलाह-मश्वरा करेगा।
(ब) हलक़े की मजलिसे-शूरा की सभा वर्ष में नियमित रूप से दो बार होगी और दो सभाओं के बीच आठ महीने से अधिक का अन्तराल न होगा।
(स) हलक़े की मजलिसे-शूरा की असाधारण सभा अमीरे-हलक़ा किसी भी समय बुला सकता है और अगर मजलिस के आधे अरकान अमीरे-हलक़ा से लिखित माँग करें तो मजलिस की असाधारण सभा जल्द-से-जल्द बुलानी ज़रूरी होगी |
(द) हलक़े की मजलिसे-शूरा का कोरम मजलिस के कुल अरकान के 60 प्रतिशत पर आधारित होगा। लेकिन अगर कोई सभा कोरम पूरा न होने की वजह से स्थगित करनी पड़े तो दूसरी सभा के लिए कोई कोरम न होगा।
(य) हलक़े की मजलिसे-शूरा की सभा के समय अमीरे-हलक़ा उसका अध्यक्ष होगा।
(र) हलक़े की मजलिसे-शूरा की वार्षिक सभा में निम्नलिखित चीज़ें विचार और फ़ैसले के लिए पेश होंगी-
(3) सालाना रिपोर्ट ।
(2) विगत वर्ष के बजट की रौशनी में हलक़े के बैतुल-माल की आमद (आय) और ख़र्च की रिपोर्ट जिसके साथ ऑडिटर की रिपोर्ट भी शामिल होगी।
(3) आगामी वर्ष का बजट।
(ल) किसी विषय में यदि अरकान एकमत नहीं होते हैं तो इस स्थिति में फ़ैलला बहुमत के आधार पर होगा और मतगणना के समय अध्यक्ष का मत भी एक मत माना जाएगा। अलबत्ता मतों के बराबर-बराबर विभाजित हो जाने की स्थिति में फ़ैसला उन मतों के मुताबिक़ होगा जिनमें अध्यक्ष (अमीरे-हलक़ा) का मत शामिल हो।
दत्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द उठ
दफ़ा - 5 : अमीरे-हलक़ा आवश्यक विवरण के साथ हलके की मजलिसे-शूरा के फ़ैसले 75 दिन के अन्दर अमीरे-जमाअत के पास तौसीक़ (पुष्टि) के लिए भेज देगा । लेकिन अगर कभी हलक़े की मजलिसे-शूरा की राय यह हो कि किसी विशेष मामले में उसके फ़ैसले के मुताबिक़ तत्काल क़दम उठाना अनिवार्य है तो तौसीक़ हासिल हो जाने से पहले भी अमीरे- हलक़ा क़दम उठा सकता है।
मक़ामी निज़ाम (स्थानीय व्यवस्था)
मक़ामी जमाअतें दफ़ा - 52 : जिस स्थान पर जमाअत के एक से ज़्यादा अरकान हों वहाँ मक़ामी जमाअत क़ायम की जाएगी । लेकिन अगर किसी स्थान पर एक ही रुक्न हो तो उसका सम्बन्ध सीधे अपने हलक़े के अमीर से होगा और उसकी हिदायतों के मुताबिक़ वह काम करेगा।
मक़ामी अमीर
दफ़ा - 58 : हर मक़ामी जमाअत का एक अमीर होगा, जिसकी नियुक्ति अमीरे-जमाअत, जमाअत के हितों को ध्यान में रखते हुए मक़ामी अरकान के परामर्शों और अमीरे-हलक़ा के सलाह-मश्वरे को सामने रखकर, करेगा।
दफ़ा - 54 : मक़ामी अमीर, अमीरे-हलक़ा की हिदायतों के अधीन अपनी जमाअत के अनुशासन और व्यवस्था और मातहत अरकान (अपने यहाँ के अरकान) की तरबियत व रहनुमाई का ज़िम्मेदार होगा और जमाअत के काम मक़ामी जमाअत के अरकान के मश्वरे से करेगा। अलबत्ता अगर किसी मक़ाम पर अरकान की संख्या 20 से अधिक हो तो वहाँ मक़ामी मजलिसे-शूरा भी क़ायम की जा सकेगी।
मक़ामी अमीर-पद के लिए वांछित गुण
दफ़ा - 55 : मक़ामी अमीर के चुनाव में निम्नलिखित गुणों को ध्यान में रखा जाएगा-
32 दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
(7) वह मक़ामी इमारत (अध्यक्ष-पद) या किसी और जमाअती पद का उम्मीदवार या इच्छुक न हो। ।
(2) तक़वा (ईश-भय), दीनी मालूमात, अमानत व दियानत, मामले की समझ, सहनशीलता, इस्लामी आन्दोलन के स्वभाव की गहरी परख और उससे वाबस्तगी (सम्बद्धता), जमाअत के दस्तूर की पाबन्दी, दावती जिद्दोजुहद, अल्लाह की राह में मजबूती के साथ जमे रहने और संगठनात्मक क्षमता के लिहाज से सामूहिक रूप से मक़ामी अरकान में सबसे बेहतर हो ।
मक़ामी अमीर और अमीरे-हलक़ा का पारस्परिक सम्बन्ध
दफ़ा - 56 : मक़ामी अमीर अपने से सम्बन्धित कर्त्तव्यों के सिलसिले में अमीरे-हलक़ा के सामने उत्तरदायी होगा |
दस्तूर जमाअते-इस्लागी हिन्द 33
भाग - 4 वित्त-व्यवस्था बैतुल-माल (कोष)
दफ़ा - 57 : (अ) हर मक़ामी जमाअत के लिए मक़ामी बैतुल-माल, प्रत्येक हलक़े में हलक्रे का बैतुल-माल और मर्कज़ी जमाअत में मर्कजी बैतुल-माल क़ायम किया जाएगा।
(ब) अमीरे-जमाअत को अधिकार प्राप्त होगा कि अगर जमाअत के हित में वह ज़रूरत महसूस करे तो किसी भी मक़ामी बैतुल-माल का विलय हलके या मरकज के बैतुल-माल में कर दे।
दफ़ा - 58 : जमाअत के अरकान अपनी जकात और उश्र (अनाज और फल वगैरा की पैदावार का निश्चित भाग) जाब्ते के मुताबिक़ जमाअत के मक़ामी बैतुल-माल में दाख़िल करेंगे।
व्याख्या : मुनफ़रिद अरकान की जुकात और उश्र के सिलसिले में अमीरे-जमाअत उचित नियम बनाएगा।
मर्कजी बैतुल-माल
दफ़ा - 59 : मर्कज़ी बैतुल-माल अमीरे-जमाअत के अधीन होगा, जिससे वह स्वीकृत एवं पारित बजट के अनुसार निर्धारित मदों प्र ख़र्च करेगा।
व्याख्या : अमीरे-जमाअत को बजट की एक मद से दूसरी मद में रक्मों के ले जाने और गैर-मामूली हालात में तथा अप्रत्याशित अनिवार्य जरूरतों के लिए पारित बजट के अतिरिक्त रक्मों को ख़र्च करने का भी दफ़ा-29 में दर्ज शर्तों के अधीन अधिकार प्राप्त होगा।
दफ़ा - 60 : मर्कजी बैतुल-माल के हिसाबों की जाँच हर साल किसी ऑडिटर से कराई जाएगी जिसकी नियुक्ति मर्कज़ी मजलिसे-शूरा करेगी और ऑडिटर की रिपोर्ट मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा में पेश होगी।
उ4 दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
हलक़े का बैतुल-माल
दफ़ा - 64 : (आ) प्रत्येक हलक़े का बैतुल-माल उसके अमीर के अधीन होगा, जिससे वह अपने हलक़े की मजलिसे-शूरा के सलाह-मश्वरे से निर्धारित म॒दों पर खर्च करेगा।
(ब) प्रत्येक अमीरे-हलक़ा अपने हलक़े के बैतुल-माल की आमद व खर्च के सिलसिले में अमीरे-जमाअत के सामने उत्तरदायी होगा।
(स) हलक़े के बैतुल-माल के हिसाबों की जाँच हर साल ऑडिटर से कराई जाएगी, जिसकी नियुक्ति हलक़े की मजलिसे-शूरा करेगी।
मक़ामी बैतुल-माल
दफ़ा - 62 : (आओ) प्रत्येक मक़ामी बैतुल-माल मक़ामी अमीर के अधीन होगा, जिससे वह मक़ामी अरकान के सलाह-मश्वरों से निर्धारित मदों पर ख़र्च करेगा।
(ब) प्रत्येक मक़ामी अमीर अपने बैतुल-माल की आमद व ख़र्च के सिलसिले में अमीरे-हलक़ा के सामने उत्तरदायी होगा।
बैतुल-माल की व्यवस्था - दफ़ा - 63 : बैतुल-माल के सम्बन्ध में सिद्धान्त और नियम अमीरे-जमाअत
बनाएगा।
दस्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द उ5
भाग - 5
विविध
ख़ाली निशस्तें (रिक्त स्थान)
दफ़ा - 64 : मजलिसे-नुमाइन्दगान, मर्कजी मजलिसे-शूरा या हलक़े की मजलिसे-शूरा में से किसी का कोई स्थान ख़ाली हो जाए तो तीन महीने के अन्दर उस स्थान को नियमानुसार पुर करना जरूरी होगा, सिवाय इसके कि यह स्थान मीक़ात (सत्र) की अन्तिम छमाही में ख़ाली हुआ हो।
इस्तीफ़ा ः दफ़ा - 65 : (अ) अमीरे-जमाअत के अलावा अगर कोई और अधिकारी अपने पद से इस्तीफ़ा दे तो उसके इस्तीफ़े के बारे में फ़ैसला करने का अधिकार अमीरे-जमाअत को प्राप्त होगा।
(ब) अमीरे-जमाअत के इस्तीफ़े के बारे में फ़ैसला करने का अधिकार मजलिसे-नुमाइन्दगान को प्राप्त होगा।
(स) अपने पद से इस्तीफ़ा देने के बावजूद इस्तीफ़ा देनेवाला व्यक्ति उस समय तक अपने पद पर बरक़रार रहेगा, जब तक कि उसका इस्तीफ़ा मंजूर न हो जाए।
दफ़ा - 66 : अगर जमाअत का कोई रुक्न, जमाअत की रुकनीयत से इस्तीफ़ा दे दे तो उसे अपने इस्तीफ़े पर पुनर्विचार के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा एक महीने का अवसर दिया जा सकता है।
माजूली (पद से हटाना)
दफ़ा - 67 : किसी पदाधिकारी को उसके पद से हटाने का अधिकार उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों को प्राप्त होगा, जिन्हें उस पद के लिए किसी व्यक्ति की नियुक्ति या उसके चुनाव का अधिकार प्राप्त होगा । पद से हटाने की यह कार्रवाई ठीक उसी तरीक़े से पूरी होगी जो तरीक़ा उसके चुनाव या नियुक्ति का इस दस्तूर में दर्ज है।
36 दल्तूर जमाअते-इस्लामी हिन्द
. इख़राज (निष्कासन)
दफ़ा - 68 : जमाअत के किसी रुक्न का जमाअत से निष्कासन सिर्फ़ इस स्थिति में हो सकेगा जबकि-
(7) वह इस दस्तूर की दफ़ा-6 की अपने कथन या व्यवहार से उपेक्षा करे, या
(2) दफ़ा-8 की किसी शिक्र (अंश) की ख़िलाफ़वर्जी (अवहेलना) करे और इस ख़िलाफ़वर्जी से बाज न आए, या |
(3) जमाअत की निर्धारित पॉलिसी की ख़िलाफ़वर्जी करे, या
(4) ऐसा ढँग अपनाए जो जमाअत के अनुशासन, या' उसकी अख़लाक़ी (नैतिक) व दीनी हैसियत को नुक़सान पहुँचानेवाला हो, या
(5) उसके आचार-व्यवहार से जाहिर हो कि उसे अब जमाअत के काम पे कोई दिलचस्पी बाक़ी नहीं रही है, या
(6) वह इंडियन यूनियन (भारत-संघ) की नागरिकता त्याग दे।
दफ़ा - 69 : (अ) जमाअत के किसी रुक्न का जमाअत से ख़ारिज करने ते पहले उसे निष्कासन के कारणों से सूचित करके.अपनी सफ़ाई पेश करने क्रै लिए दो महीने का मौक़ा दिया जाएगा।
(ब) जमाअत से ख़ारिज (निष्कासन) करने के सिलसिले में फ़ैसले से _हले अगर जरूरत महसूस की जाए तो अमीरे-जमाअत उसे मुअत्तल 'निलम्बित) भी कर सकता है, और अगर हालात को देखते हुए अमीरे-हलक़ा ग़माअत के उस रुक्न को तत्काल मुअत्तल करना अनिवार्य समझे तो उसे गी अमीरे-जमाअत के फ़ैसले तक रुकनीयत से मुअत्तल करने का अधिकार एप्त होगा।
जमाअतों की मुअत्तली (निलंबन)
दफ़ा - 70 : अगर जमाअती आवश्यकताओं और हितों को अपेक्षित हो ती अमीरे-जमाअत को किसी मातहत जमाअत को मुअत्तल करने या भंग कर ने का अधिकार प्राप्त होगा और इस सिलसिले में मर्कजी मजलिसे-शूरा के
स्तूर जमाजते-इस्लामी हिन्द 37
जिन अरकान से तत्काल परामर्श करना सम्भव हो, अमीरे-जमाअत उनसे परामर्श भी करेगा।
नियम बनाने के अधिकार
दफ़ा - 77 : इस दस्तूर के आशय को पूरा करने और दावती सरगर्मियों को व्यवस्थित करने के लिए जिन उपनियमों की ज़रूरत पेश आए, उन्हें अमीरे-जमाअत बनाएगा। इस सम्बन्ध में वह मर्कजी मजलिसे-शूरा के अरकान से सलाह-मश्वरा भी करेगा और यथासम्भव उनके मश्वरों को ध्यान में रखेगा।
दस्तूर की त्ताबीर (व्याख्या)
दफ़ा - 72 : इस दस्तूर में यदि कहीं ताबीर (व्याख्या) में कोई मतभेद
हो रहा हो तो उसका फ़ैसला मर्कजी मजलिसे-शूरा की सभा करेगी। दस्तूर में संशोधन दफ़ा - 78 : जमाअत के दस्तूर में संशोधन से सम्बन्धित जो प्रस्ता८ - अमीरे-जमाअत या मर्कजी मजलिसे-शूरा के किसी रुकन की तरफ़ से पेश है
और जमाअत के अरकान के जो प्रस्ताव अमीरे-जमाअत या मर्कजी मजलिसे- शूरा के किसी रुकन के नजुदीक विचारणीय हों, मर्कजी मजलिसे-शूरा उनवे बारे में सिफ़ारिशें तैयार करेगी और फ़ैसला मजलिसे-नुमाइन्दगान करेगी।
दफ़ा - 74 : अगर अमीरे-जमाअत या मजलिसे-नुमाइन्दगान के पन्द्रह हाजिर अरकान दस्तूर में किसी संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के प4 में हों तो ऐसा प्रस्ताव दफ़ा-78 की पाबन्दी के बिना नुमाइन्दगान की सभ में विचार और फ़ैसले के लिए पेश हो सकेगा।
दफ़ा - 75 : जमाअत के दस्तूर में जिस संशोधन के बारे में मर्कर्ज मजलिसे-शूरा का यह मत हो कि उसकी हैसियत आंशिक या शाब्दिव संशोधन की है, उसके सम्बन्ध में मजलिसे-नुमाइन्दगान के अरकान वे लिखित मत हासिल करके भी फ़ैसला किया जा सकता है।
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